बाजार में बिकने वाली नक्कासीदार बांस की डलिया ऐसे होती है तैयार
जिले के बोआरीजोर प्रखंड के पहाड़ी इलाकों में पहाड़िया आदिवासी रहते हैं. इनके पास रोजगार का कोई साधन नहीं है, नतीजतन वे पहाड़ों से बांस लाकर डलिया बनाने का काम करते हैं. एक मजदूर दिन भर में एक से दो डलिया बना पाता है और उस डलिया को आसपास के इलाकों में लगने वाले हाट-बाजारों में बेचकर अपना जीविकोपार्जन करता है.
बोआरीजोर के पियाराम गांव के अधिकतर लोग डलिया बनाते हैं. गांव के दानियाल सोरेन बताते है कि वे 35 वर्षों से यह काम कर रहे हैं. हालांकि अब नए दौर के साथ-साथ लोग उनकी डलिया कम खरीदते हैं. क्योंकि अब लोग ज्यादातर प्लास्टिक की डलिया उपयोग करते हैं. इसलिए उन्हें सस्ती कीमतों पर ही अपना डलिया हाट बाजारों में बेचना पड़ता है.
कैसे बनाते हैं डलिया
गांव के सियाराम मुर्मू बताते हैं कि वे जंगल से बांस लाते हैं और उसे हसुआ (हथियार) से छीलकर बड़े-छोटे सभी प्रकार की करची बनाते हैं. करची निकालने में एक से दो दिन का समय लगता है. एक साथ करीब 50 डलिया की करची बना कर रखते हैं. उसके बाद उसे बुन कर डलिया का निर्माण किया जाता है. जहां दिन भर में एक से दो डलिया वे लोग बुन पाते हैं और एक सौ रुपए प्रति डलिया बाजारों में बेचते हैं.
बनती हैं और भी कई चीजें
डलिया के अलावा इस गांव के आदिवासी सूप, पंखा, चटाई, खिलौना, टोकरी और जाल भी बनाते हैं. वहीं इनके द्वारा बनाई गई बांस की चीज़ें काफी सुंदर और महीन कलाकृति वाली होती हैं. ये चीजें किसी मेले के आने पर बनाई जाती हैं. इसके साथ-साथ सूप खास कर छठ पर्व के मौके पर इसका निर्माण अधिक होता है.
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